जस्टिस चमलेश्वर और CJI मिश्रा के बीच की प्रतिद्वंदता हर कोर्ट का जानकार रखता है। आज जो टशन बाहर आई उसका आधार वो 46 मेडिकल कॉलेज थे जिनको फर्जी तरीके से मान्यता दी गयी और इस माममें में सुप्रीम कोर्ट के कुछ जस्टिस की दखलंदाजी भी मानी जाती है। बाकायदा उड़ीसा के एक पूर्व जज को भी गिरफ्तार कर दिया गया था। अब इसके पीछे क्या खेल हो रहा है। वो समझें- दरअसल जस्टिस चमेलश्वर की हैसियत सुप्रीम कोर्ट में नम्बर 2 है जस्टिस मिश्रा के बाद। अब कॉलेजियम के अनुसार चीफ जस्टिस के नियंत्रण में कुल 5 जस्टिस अगला चीफ जस्टिस नियुक्त करते हैं, तो जस्टिस चमलेश्वर को अपना पत्ता कटता नजर आ रहा है। इसीलिए वो मीडिया में आकर लोकतंत्र की दुहाई दे रहे हैं, और जस्टिस मिश्रा पर मनमानी का आरोप लगा रहे हैं। मगर बात इतनी भी नही है। जिस मेडिकल फर्जीवाड़े का केस जस्टिस मिश्रा ने पलटा, दरअसल उसके पीछे कई षड्यंत्र है। इस केस को प्रशांत भूषण देख रहा है। इस प्रशांत भीषण ने चुपचाप जस्टिस चमलेश्वर के पास जाके इस केस को अपने पसंदीदा जजों की बेंच पे भिजवा दिया। अब चूंकि ये मेंशनिंग का अधिकार सिर्फ चीफ जस्टिस का होता है तो मिश्रा ने इसे पलट दिया। इस पर भूषण चिल्लाता हुआ मिश्र के कोर्ट में जब पहुंचा तो वहां पहले से ही बार कौंसिल मौजूद थी। भूषण ने इतनी बदतमीजी की कि बार काँसिल के सचिव ने भूषण का लाइसेंस रद्द करने की मांग कर दी। इस पर जस्टिस मिश्र को कहना पड़ा कि यहां पहले तुम जैसे वकील ही केस के जज तय करते थे? इसलिए अब भी करना चाह रहे हो? हालांकि बात यहाँ भी खत्म नही होती। जस्टिस मिश्र ही वो हैं जिन्होंने याकूब मेनन पर अंतिम फैसला दे उसे फांसी लगवाई। तब ये भूषण, ग्रोवर, सिब्बल आदि कई NGO के साथ उसकी माफी मांग रहे थे। यहां तक कि कई जज भी। ये लोग तब देर रात को पहुंच गए थे और वहां अपनी बेजत्ती करवा आये। तब से जस्टिस मिश्रा इन्हें खटक रहे हैं। इसके अलावा अब राम मंदिर का केस भी फाइनल होने वाला है जो जस्टिस मिश्र के अधीन होगा, जिस पर इन लोगों का पूरा जोर है कि ये इस जस्टिस के रहते पूरा ना हो बल्कि इनके किसी चहेते के अधीन आये, ताकि ये उसे पहले तो अपने पक्ष, नहीं तो कम से कम अगले लोकसभा के बाद खींच पाएं। इस मामले में भी धवन और सिब्बल जस्टिस मिश्र को कोर्ट में ही धमकी दे आये थे और बेंच के जज की संख्या भी ज्यादा चाहते थे, जिसे जस्टिस मिश्रा ने मना कर दिया था। इसके अलावा जिन राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक है, वो केस भी मिश्रा की अदालत में चल रहा है जिस पर पूरी उम्मीद है कि वहां हिन्दू को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलेगा। इसके अलावा चिंदम्बरम का मैक्सिस केस भी जस्टिस के पास है जिसपर नियमित सुनवाई चलेगी। ट्रिपल तलाक़ पर मुह की खाये ये कांग्रेस पोषित गिरोह जानते है कि उपरोक्त केस में इनका क्या होगा और फिर आगे इनकी राजनीति का क्या होगा। जस्टिस लोया के नाम पर बहाना भी ये जस्टिस जो बना रहे है, उसका आधार भी अमित शाह को घेरना था, जिसमे कांग्रेसी मीडिया ने इनका साथ दिया और अब भी मीडिया पूरा इनके पक्ष में माहौल बनाएगी ताकि मिश्रा के आगे के जजमेंट को प्रभावित किया जा सके। ये कांग्रेस द्वारा पहली बार नही है। पिछले कितने जजों के उदाहरण है जिन्होंने कांग्रेस के भले के लिए काम किया और फिर मलाई खाई। उनपर लिखने में ये पहले से बड़ी पोस्ट पूरी किताब बन जाएगी। बाकी जब हम कहते है इस देश का हर मुद्दा मोदी बनाम कांग्रेस(और उसका गिरोह) है तो यूँही नही कहते। हम पीठ पीछे की बाते जानते हैं। हम तुम्हारी तरह सिर्फ आगबबूला होने वाले फेसबुकिये नही हैं। अगर यहां तक पूरा पढ़ा तो बहुत बहुत धन्यवाद। कुमार सुधांशु चौबे उदासी से साभार।
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Saturday, January 13, 2018
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